लेकिन क्या यह भी सोचा है - दर्द हमारा कौन सहेगा ? तपते मरुथल में पुरवाई के झोंके अब क्या आएँगे ? रुँधे हुए कंठों से कोकिल गीत मधुर अब क्या गाएँगे ? तुमको तो गाना ही होगा, लेकिन क्या यह भी सोचा है - अब उस लय में कौन बहेगा ? यह कैसा बसंत आया है ? हरी दूब में आग लगा दी ! निंदियारे फूलों की खातिर उफ्! काँटों की सेज बिछा दी ! इसको अपनाना ही होगा, लेकिन क्या यह भी सोचा है - आशाओं का महल ढहेगा। एक बार फिर छला भँवर ने, डूब गई मदमाती नैया। एक बार फिर बाज समय का लील गया है नेह चिरैया। मन को समझाना ही होगा, लेकिन क्या यह भी सोचा है - प्रणय-कथा अब कौन कहेगा ? |
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शनिवार, 8 जनवरी 2011
प्रणय-कथा अब कौन कहेगा
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बहुत ही मार्मिक
जवाब देंहटाएंआदरणीय डा.नागेश पांडेय 'संजय' जी
जवाब देंहटाएंपहली बार आपके ब्लॉग पर आना हुआ ...आपके व्यक्तित्व और कृतित्व के बारे में जानकार मन हर्षित हो गया ...निश्चित रूप से आप विराट व्यक्तित्व के स्वामी हैं ....आपका लेखन अनवरत रूप से जारी रहे ...ईश्वर से यही प्रार्थना है
जीवन से जुडी मार्मिक कविता ...आपका आभार इस सार्थक प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंकेवल राम जी , आपकी शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद . आभार .
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