आज संशय ने हृदय की देहरी पर
बैठकर मुस्कान कुछ ऐसी बिखेरी,
अकंपित लौ नेह की कुछ कँपकपाई
यों लगा जो लड़खड़ाई साध मेरी।
किंतु तुमने भ्रमित मन के कटघरे में
कौंधते हर प्रश्न का उत्तर दिया है।
ठीक समझीं तुम कि मैं डरता बहुत हूँ,
क्या करूँ है चोट खाई बहारों से।
सूर्य से उपहार में मुझको मिला तम,
इसलिए भयभीत रहता सितारों से।
वर्तिका-सी ही सही पर जलीं तो तुम
और उर में ज्योति सागर भर दिया है।
कामनाओं की चदरिया फट न जाए,
इसलिए था रख दिया उसको तहाकर।
ओढ़ने को था तुम्हारा नाम काफी
फिर रहा था उसे सीने से लगाकर।
किंतु कोरे पत्र पर हस्ताक्षर कर,
मुझे तो तुमने अनोखा वर दिया है।
मुझे तुमसे चाहिए कुछ भी नहीं, सच!
खुश रहो तुम सर्वदा यह कामना है।
हाँ, कभी गिरने लगूँ यदि नेह-पथ से
तो हमारा हाथ तुमको थामना है।
और साथी! मैं गिरूँगा भी नहीं अब,
यह हुनर मुझमें तुम्हीं ने भर दिया है।
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंआज संशय ने हृदय की देहरी पर
जवाब देंहटाएंबैठकर मुस्कान कुछ ऐसी बिखेरी,
अकंपित लौ नेह की कुछ कँपकपाई
यों लगा जो लड़खड़ाई साध मेरी।
किंतु तुमने भ्रमित मन के कटघरे में
कौंधते हर प्रश्न का उत्तर दिया है।
bahut badhiyaa
सूर्य से उपहार में मुझको मिला तम,
जवाब देंहटाएंइसलिए भयभीत रहता सितारों से।
बहुत बढ़िया .
मुझे तुमसे चाहिए कुछ भी नहीं, सच!
जवाब देंहटाएंखुश रहो तुम सर्वदा यह कामना है।
हाँ, कभी गिरने लगूँ यदि नेह-पथ सेतो
हमारा हाथ तुमको थामना है।
और साथी! मैं गिरूँगा भी नहीं अब,
यह हुनर मुझमें तुम्हीं ने भर दिया है।
बहुत खुबसूरत |
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआप सभी को मेरा अछोर धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर!...
जवाब देंहटाएंमुझे तुमसे चाहिए कुछ भी नहीं, सच!
जवाब देंहटाएंखुश रहो तुम सर्वदा यह कामना है।
हाँ, कभी गिरने लगूँ यदि नेह-पथ से
तो हमारा हाथ तुमको थामना है।
और साथी! मैं गिरूँगा भी नहीं अब,
यह हुनर मुझमें तुम्हीं ने भर दिया है।
vishwaas ka diyaa yun hi jalta rahe....aabhar
कामनाओं की चदरिया फट न जाए,
जवाब देंहटाएंइसलिए था रख दिया उसको तहाकर।
ओढ़ने को था तुम्हारा नाम काफी
फिर रहा था उसे सीने से लगाकर।
....बहुत सार्थक सोच...सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति..