गीत : डा. नागेश पांडेय ' संजय '
साथी! वह भी दिन आएगा।
शब्द रूठ जाएँगे स्वर से,
भावों का पनघट रोएगा।
सपनों की बोझिल गठरी को,
थका-थका यह मन ढोएगा।
आशाओं के महावृक्ष का
पत्ता-पत्ता झड़ जाएगा।
सिर्फ जागरण बन जाएगी-
सूने नयनों की परिभाषा।
तुम्हें देखकर गिरे, करेगा
अंतिम आँसू यह अभिलाषा।
मन चहकेगा चौखट पर जब,
कोई कागा चिल्लाएगा।
सुधि के गहन धुँधलके में बस,
तेरी ही छवि रह जाएगी।
बिना नेह प्राणों की बाती,
कब तक तन को दमकाएगी।
आखिर मौन नेह का पंछी,
पंख पसारे उड़ जाएगा।
मेरी चरण-धूलि कल शायद
शुष्क हवाओं को महकाए।
मेरा समाहार कल शायद,
जग का प्राक्कथन बन जाए।
मेरा नाम भले गुम जाए,
सृजन स्वयं को दोहराएगा।
साथी! वह भी दिन आएगा।
नाम गम जाएगा मगर रचना में बचा रहेगा होना हमारा !
जवाब देंहटाएंसुन्दर लेखन !
बहुत सुन्दर रचना
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