पुस्तक - अपलम चपलम ,
कवि : डा, नागेश पांडेय संजय
प्रकाशक - श्री गाँधी पुस्तकालय , चौक , शाहजहांपुर ,
मूल्य - पांच रुपया मात्र ,
संस्करण - प्रथम , २०१० ,
इस पुस्तक में १३ सचित्र शिशुगीत हैं .
सुन्दर चित्र ममता रंजन ने बनाये हैं .
आवरण सजाया है अरविन्द राज ने .
इस पुस्तक के परिचय के रूप में पढ़ें
प्रसिद्द हास्य कवि दिनेश रस्तोगी की
काव्यात्मक समीक्षा
मुह में चुबला करके चुइंगम ,
पढ़ी खूब फिर अपलम चपलम .
सोलह प्रष्टों की यह पुस्तक .
कवितायें हैं पर तेरह तक .
पहली कविता में काफी दम ,
हाँ हाँ वो ही अपलम चपलम .
दूजी कविता बस वाली है ,
सीट नहीं कोई खाली है .
तीसरी कविता में गौरैया ,
नहीं असल में दिखती भैया .
चौथी तो है बहन हमारी ,
छोटी नटखट न्यारी , प्यारी .
पांचवी कविता मोटर कार ,
सरपट दौड़ेगी सरकार .
गुच्छे में दिखता लंगूर ,
छटी हुई कविता अंगूर .
दादी का चश्मा क्या बात ,
कविता वह है नंबर सात .
जब आएगी होली भैया ,
रंग खेलो या कोको तैया .
नाइन बिल्ली निकली लाट ,
खूब बचाया बन्दर बाँट .
दसवीं कविता दस में दस ,
सोओ और सोने दो बस .
जय कंप्यूटर भैया घर में ,
द्रष्टि क्षीण हो पहनो चश्में .
लाड प्यार में बिगड़ा लाल,
दूध नहीं दुद्धू का कमाल .
श्रेष्ठ कवि , सुन्दर है शुचिता ,
पर है अंतिम गड़बड़ कविता .
-दिनेश रस्तोगी
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3 टिप्पणियां:
बधाई!
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