अम्मा मेरे मूंछ न क्यों चाचा मुझे चिढाते है अपनी मूंछ दिखाते है हंस हंस कर बतलाते है मूंछ तुम्हारे थी लेकिन बिल्ली आई चाट गयी अम्मा अम्मा बोलो तो क्या चाचा की बात सही बात सही हो तो नकटी बिल्ली की मूंछे नोचू बोलो बोलो मूंछ न क्यों अरे अभी तू छोटा है और नहीं तू मोटा है साग सब्जिया खाया कर दूध खूब सटकाया कर खूब बड़ा हो जायेगा तंदुरुस्त बन जायेगा मूंछे खुश हो जाएगी झट पट चट उग आयेंगी चाचा की बाते सुनकर बेमतलब ही चिढ़ता तू अब मत रोना ऊँ ऊँ ऊँ माँ मुझको बहकाओ मत बाते ढेर बनाओ मत बिल्ला के भी मूंछे है पिल्ला के भी मूंछे है बिल्ला भी तो छोटा है पिल्ला तनिक न मोटा है मैंने मन में ठाना है मूंछे मुझको पाना है नकली ही तुम मगवा दो उन्हें लगाकर खुश हो लू तब न रोऊ ऊँ ऊँ ऊँ तब न पूंछू मूंछ न क्यों |
6 टिप्पणियां:
आपकी कविता पढ़कर अपना बचपन याद आ गया . कविता सुनकर बच्चे झूम उठे . . अभिषेक शर्मा , बरेली
badhaee s b jauhari 09450443299
aaj nageshji ki websight pahli bar dekhi . sukhad ashcharya hua. is websight ke madhyam se sari duniya ke hindi sahitya premi unki rachnao ka rasaswadan kar skenge. yuva unke kam se prerna lekar adhik shram karne ko utsahit honge. ishwar unko nikharte rahen . jeevan men wo sukhi rahen. shashi bhushan jauhari shahjahanpur # 09450443299
बच्चों के प्रश्नों का वास्तव में कोई अंत नहीं होता..बहुत सुन्दर रचना
aap ki kavita munch kuy nahi man ko gudgudati hi
वाह ! कितनी मज़ेदार कविता है अंकल......... बहुत अच्छी लगी
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