अहा! हो गई छुट्टी। जो चाहें सो करें मचायें धूम-धड़ाका। हँसी-खुशी का खुला खजाना डालें डाका। जी भर खेलें, डंडे पेलें, मौज मनाएँ। खाएँ-पिएँ, मजे से घूमे, रंग जमाएँ। मौसम के प्यारे-न्यारे ताजे फल खाएँ। हट्टे-कट्टे, तगड़े तंदरुस्त बन जाएँ। पिकनिक का भी कभी-कभी प्रोग्राम बनाएँ। ‘हिप-हिप हुर्रे’, गुलछर्रे भी खूब उड़ाएँ। विद्यालय से गर्मी भर को कुट्टी ! कुट्टी ! कुट्टी ! टी.वी. देखें, सुनें रेडियो, पढ़ें कहानी, लेकिन करना नहीं हमें कोई मनमानी। बोर अगर हो जाएँ फिर भी पेड़ लगाएँ। पड़ी पुरानी चीजों से कुछ नया बनाएँ। और चाह हो नए सत्र में रोब सभी पर खूब जमें, सम्मान हमें दें सारे टीचर। तो फिर भैया, पढ़ते भी रहना है मन से। याद रखें यह, नहीं बड़ा कुछ विद्याधन से। पूछेंगे सब पीकर आए कहो कौन सी घुट्टी ! घुट्टी ! घुट्टी ! चित्र साभार : गूगल सर्च |
मंगलवार, 12 अप्रैल 2011
हो गई छुट्टी
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7 टिप्पणियां:
सुन्दर गीत..पर मेरी तो अभी पढाई चल रही है.
bahut sundar geet...
वाह ! बहुत ही प्यारी कविता . आपको बधाई .
बोर अगर हो जाएँ फिर भी
पेड़ लगाएँ।
पड़ी पुरानी चीजों से
कुछ नया बनाएँ।
सुन्दर सन्देश .
bachchon kee manpasand ghutti
chhutti chhutti chhutti
बच्चों की मजेदार कविता .
रोचक और बेहद ही मजेदार गीत
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