बाल कविता : डा. नागेश पांडेय 'संजय '
कितना अच्छा हो यदि ,
अंबर रसगुल्ले बरसाए .
और हवा संग टाफी उड़कर
पास हमारे आए .
बहे नदी में दूध , पेड़ में
लगें किताबें प्यारी .
धरती उगले चाकलेट नित
भारी - भरकम न्यारी .
विद्यालय में टीचर बांटे ,
मेवा और मिठाई .
जब जी चाहे , तब हम कर लें
थोड़ी - बहुत पढाई .
इम्तहान को दिए बिना ही
अगली कक्षा जाएँ .
बिना कुछ किए सारे जग में
ऊँचा नाम कमाए .
यदि ऐसा हो जाए , तो सच
मजा बहुत आएगा .
लेकिन क्या बिन मेहनत के फल
दिल को भी भाएगा ?
हम अच्छे बच्चे , हमको ये
सपने नहीं सुहाते .
इन बेढंगी बातों पर हम
कभी नहीं इतराते .
लेखक की प्रकाशनाधीन पुस्तक से साभार
7 टिप्पणियां:
इम्तहान को दिए बिना ही
अगली कक्षा जाएँ .
बिना कुछ किए सारे जग में
ऊँचा नाम कमाए .
--
वाह!
बहुत सुन्दर!
यह तो बच्चों के मन की बात हो गई!
कितना अच्छा हो यदि ,
अंबर रसगुल्ले बरसाए .
और हवा संग टाफी उड़कर
पास हमारे आए .
बहुत सुंदर..सच में बचपन की बात ही अनोखी है....
यदि ऐसा हो जाए , तो सच
मजा बहुत आएगा .
लेकिन क्या बिन मेहनत के फल
दिल को भी भाएगा ?
...बहुत प्रेरक और रोचक बाल गीत..आभार
सुंदर ...प्यारी कविता
वाह, तब तो बहुत मजा आयेगा...हुर्रे.
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'पाखी की दुनिया' में तन्वी आज 6 माह की.
बहुत सुन्दर कविता!
सृष्टि को जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
रोचक और बेहद ही मजेदार गीत
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