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शुक्रवार, 2 जुलाई 2021

कविता : 'जन्मदिवस तो तब होता था' - नागेश पांडेय 'संजय'

 जन्मदिवस....

डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

जन्मदिवस तो तब होता था!


माँ आँगन लीपा करती थीं,

और बुलौआ लगवाती थीं।

साँझ ढले कितनी महिलाएँ

फिर मेरे घर पर आती थीं।

पाटे पर बैठाया जाता,

मुझको दूध पिलाया जाता।

धागे से नपती लम्बाई,

माला जाती थी पहनाई।

आँखों में काजल लगता था,

लाखों का हर पल लगता था।

ढमक ढमक ढोलक बजती थी,

क्या सुंदर महफ़िल सजती थी।

बनती थी पूड़ी-तरकारी,

खूब याद है, कितनी सारी।

डलबे भर गुलगुले बनाकर,

माँ खुश होतीं थीं बँटवाकर।

और मजे से मन ही मन मैं,

उमर जोड़कर खुश होता था।

जन्मदिवस तो तब होता था।


एक महीने पहले से ही

मेरे कपड़े आ जाते थे।

शर्ट बेलबॉटम दर्जी से,

पिता ! फटाफट सिलवाते थे।

तब आँखों में चमक बहुत थी,

तब जीवन में दमक बहुत थी।

तब मन में उल्लास बहुत था,

हास और परिहास बहुत था।

भूख बहुत थी, प्यास बहुत थी,

दृढ़ता वाली आस बहुत थी।

ममता की शीतल छाया थी,

इसीलिए निखरी काया थी।

बरगद जैसे पिता साथ थे,

हाँ, तब मेरे चार हाथ थे।

हाँ, तब मेरे नयन कमल थे,

इन नयनों में पलते कल थे।

अधछलकी गगरी बाकी है,

यादों की नगरी बाकी है।

बातें ही बातें अब बाकी,

जगी-जगी रातें अब बाकी।


सपनों वाले राजमहल में,

जब मैं राजकुँवर होता था।

जन्मदिवस तो तब होता था।

■ डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

रचनाकाल  : 3 जुलाई 2020, समय : रात्रि 1:09

(माता और पिता के बिना, पहले जन्मदिन पर; सोचते-सोचते रात के घुप्प अँधेरे में : डबडबाई आँखों से  बह चली थी यह कविता)

5 टिप्‍पणियां:

  1. बड़ी सुंदर कविता । पुनः जन्मदिन की बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  2. डॉ मोहम्मद अरशद खान2 जुलाई 2021 को 8:06 am बजे

    भावुक कर देने वाली यादगार कविता।

    जवाब देंहटाएं
  3. राहुल रस्तोगी11 सितंबर 2023 को 10:07 pm बजे

    अत्यंत मनमोहन कविता👌👌

    जवाब देंहटाएं

भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।