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सोमवार, 16 मई 2011

इसलिए मैं लौट आया





गीत : डा. नागेश पांडेय 'संजय'

पंथ वह मेरा नहीं था , 
इसलिए मैं लौट आया .
मधुमयी मधुमास भी था , 
नेह का उच्छवास था , 
प्रीति की अनुपम छटा थी , 
हर्ष की छाई घटा थी . 
मोद नभ से बरसता था , 
मुक्ति को दुःख तरसता था . 
थे हजारों धाम सुख के 
धाम पर तेरा नहीं था . 
इसलिए मैं लौट आया  .

राज मुझको मिल रहा था , 
ताज मुझको मिल रहा था . 
स्वर्ग चरणों में पड़ा था ,
हास कर जोड़े खड़ा था .
क्या अनोखी सम्पदा थी , 
मगर मेरी भी अदा थी ,
 रोकते थे सब , मगर 
तुमने मुझे टेरा नहीं था ,
इसलिए मैं लौट आया .

क्या करूं सम्मान लेकर ?
क्या करूँ वरदान लेकर ?
किसलिए जीवन सवारूँ ?
बिन तुम्हारे क्या निहारूँ ?
सामने तो करोड़ों थे ,
तुम्हारा चेहरा नहीं था . 
इसलिए मैं लौट आया.
(कविता संग्रह ' तुम्हारे लिए ' से) 


2 टिप्‍पणियां:

  1. किसलिए जीवन सवारूँ ?
    बिन तुम्हारे क्या निहारूँ ?
    सामने तो करोड़ों थे ,
    तुम्हारा चेहरा नहीं था .
    इसलिए मैं लौट आया.

    बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना..शब्दों और भावों का सुन्दर संयोजन और प्रवाह..

    जवाब देंहटाएं

भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।