तुम मुझे मधुमास देना .
बहारों की स्वामिनी तुम ,
नेह की हो देवदूती .
हर्ष की प्रतिमूर्ति हो तुम ,
भाव की नदिया अछूती .
जिंदगी जाब तृप्त कर दे ,
तब मुझे तुम प्यास देना .
कंटकों का पंथ हूँ मैं ,
और तुम अल्हड कली-सी .
कंकडों का ढेर मैं , तुम
मधुर मिसरी की डली-सी .
जिंदगी उपहास दे जब ,
तब मुझे तुम हास देना .
तेज धारों पर पुलिन की
आस लेकर तिर रहा हूँ .
लिए झोली जनम रीती
भिखारी-सा फिर रहा हूँ .
भले कुछ देना नहीं , पर
दान का आभास देना .
जिंदगी मुझसे लड़ी है ,
जिंदगी से मैं लड़ा हूँ .
पराजय के वक्ष पर मैं
वज्र पग रखकर खड़ा हूँ .
स्वयं से ही हार जाऊं .
तब मुझे विश्वाश देना .
* डा. नागेश पांडेय 'संजय'
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भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।