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शनिवार, 29 जनवरी 2011

शब्दों के सुमन




स्वागत गीत :डा.नागेश पांडेय 'संजय' 

सम्मान्य! आपके स्वागत में
शब्दों के सुमन 
समर्पित हैं।

भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम 
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों  का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।

कुछ पुण्य हमारे थे निश्चित,
जो शुभागमन का 
सुख पाया।
हो गया धन्य जीवन अपना,
जो दर्शन का
अवसर आया।
वचनों की स्वाति सुधा पाकर,
चातक समान हम
हर्षित हैं ।

आशा क्या, है विश्वास हमें
ये क्षण
फिर-फिर-फिर आएँगे,
हम कृपाकाँक्षी अनुचर यह
सान्निध्य 
सर्वदा पाएँगे।
आशीष, दया का वरद् हस्त
पाने को हम
आकर्षित हैं।

3 टिप्‍पणियां:

भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।