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रविवार, 20 जून 2021

मुक्तक : 'पिता' : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'


'पिता' 

मुक्तक : डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

नेह घट हैं  पिता, एक वट है पिता;

 आत्मज के सदा ही निकट है पिता।

 मन भँवर में कभी भी फँसा तो लगा, 

भाव है, नाव हैं, एक तट है पिता।

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भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।