जैसे मेरे, नहीं किसी के वैसे, सबको मामा मिलें हमारे जैसे। खूब हमारे साथ खेलते-खाते, सैर कराने भी हमको ले जाते। याद उन्हें कविताएं प्यारी-प्यारी, उनके पास कथाएं ढेरों सारी। घूम-घूम कर किस्से किए इकट्ठे, दाँतों तले दबे उंगली, हाँ! ऐसे! खेलें बालीबाल, कबड्डी, लूडो, उछले, कूदें, हमें सिखाएं जूडो। लड़ना-भिड़ना उन्हें नहीं भाता है, एक-एक ग्यारह करना आता है। जो माँगू सो हँसकर सदा दिलाते, पर जाने क्यों कभी न देते पैसे? देखा नहीं कभी उनको झुँझलाते, जहां बैठ जाते हैं, खूब हँसाते। दिखने में है सीधे-साधे फक्कड़ मगर बुद्धि से पक्के लाल बुझक्कड़। सदा नियम से बँधकर रहते, करते सारे के सारे ही काम समय से। ----------------------------------------------------------------------- चित्र में : बच्चों के लोकप्रिय ब्लाग 'सरस पायस' के संपादक रावेंद्र कुमार रवि |
रविवार, 3 अप्रैल 2011
मेरे मामा
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5 टिप्पणियां:
SUNDAR RACHANAA,HARDIK BADHAI ...
बहुत सुंदर बालगीत!
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!
सुंदर बालगीत.....बहुत ही अच्छा
Nice post.
वाह ! बहुत ही प्यारी कविता . आपको बधाई .
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