नारी विषयक 15 दोहे
डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'
1
माँ, भगिनी, वामा, सुता
भले अलग हों रूप।
निज मौलिकता से सदा,
नारी रही अनूप।
2
नारी तो सम्मान है,
नारी है अभिमान।
नारी ही उपमेय है,
नारी ही उपमान।
3
नारी सुंदर वाटिका,
नारी सहज निबंध।
निज ममता, कर्तव्य से
जग में भरे सुगंध।
4
नारी के अपमान का,
अर्थ एक है नाश।
केश द्रोपदी के खुले,
रचा नया इतिहास।
5
एक नए संसार की,
रचती कथा सशक्त।
युगों-युगों से कर रही,
संसृति को अभिव्यक्त।
6
ममता, लज्जा, समर्पण,
नारी की पहचान।
इसी शक्ति की भक्ति से,
नारी बनी महान।
7
शील आभरण सर्वदा,
डिगना कब स्वीकार!
जो बिक जाए स्वार्थ में,
वह नारी है भार।
8
माँ की स्मृति से कभी,
होना नहीं निराश।
उसकी हर छवि मिलेगी,
बहन-सुता के पास।
9
क्षेत्र न अब कोई बचा,
जीत लिया हर द्वार।
निज प्रतिभा से नारि ने,
जीवन लिया सँवार।
10
नारी अब अबला नहीं,
खूब समझ लो बात।
शोषण के पग चीरकर,
रचे नए प्रतिघात।
11
कुल उद्भव कर युगों से,
सरसाया परिवार।
कुलदेवी-प्रतिनिधि यही,
जीवन का आधार।
12
जीवन-रथ के चक्र हैं,
गति के हैं आधार।
नर-नारी इस जगत के
सर्वोत्तम उपहार।
13
नर तन तो नारी हृदय,
जीवन-गति का मूल।
सदा अपेक्षित समन्वय,
कभी न जाना भूल।
14कन्या से बढ़कर नहीं,
जग में कोई दान।
सुता, भ्रात्रजा, भांजी,
तीनों एक समान।
15
सुत हो, चाहे हो सुता,
करना कभी न भेद।
बनें योग्य संतान वे,
उपजे कभी न खेद।
(उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से प्रकाशित पत्रिका 'साहित्य भारती' के अप्रैल-सितंबर 2021 अंक से साभार)
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गुरुवार, 2 सितंबर 2021
डॉ. नागेश पांडेय 'संजय' के 15 दोहे
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सुंदर दोहे सर जी।
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