गीत : नागेश पांडेय 'संजय'
तैल चित्र : रामेश्वर वर्मा
तम भरी इस जिंदगी में
तैल चित्र : रामेश्वर वर्मा
तम भरी इस जिंदगी में
नेह बाती क्यों जलाई ?
रोशनी तो हो न पाई,
हो रही है जग-हँसाई।
फेंक शूलों की चटाई,
सेज फूलों की सजाई,
नींद तो फिर भी न आई
हो रही है जग-हँसाई।
अधलिखी वह प्रेम-पाती
आपने जब से पढ़ाई,
इधर सागर-उधर खाई,
हो रही है जग-हँसाई।
आपका अपराध क्या है?
वक्त की है बेवफाई,
नियति की भी है ढिठाई,
हो रही है जग-हँसाई।
मुक्त होकर जाल से
प्यासी मछरिया छटपटाई,
आह! यह कैसी विदाई।
हो रही है जग-हँसाई।
फूँकने को चैन, दिल में
आग हमने ही लगाई,
राख तक ना हाथ आई,
हो रही है जग-हँसाई।
कामनाओं की दुल्हनियाँ
अब्याही होकर लजाई,
भाँवरों के बिन सगाई,
हो रही है जग-हँसाई।
सुन्दर प्रस्तुति
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