द्वार पर आहट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
तड़पते मन की कसक की
गंध शायद पा गया वह,
उसे आना ही नहीं था
मगर शायद आ गया वह।
मुझे घबराहट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
ज्योति यह कैसी ? बुझाने पर
अधिक ही जगमगाई।
यह फसल कैसी ? कि जितनी
कटी, उतनी लहलहाई।
प्रीति अक्षयवट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
थम गईं शीतल हवाएँ,
दग्ध उर बेहाल हैं जी।
प्यास अब भी तीव्रतम है,
पर नदी पर जाल है जी।
आस सूना तट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
क्यों जगत की वेदनाएँ
पल रहीं मन के निलय में ?
मधुर सपनों की चिताएँ
जल रहीं जर्जर हृदय में।
जिंदगी मरघट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
जिंदगी की देहरी पर,
मौत को रोके खड़ा हूँ।
नयन तुझको देख भर लें,
बस इसी जिद पर अड़ा हूँ।
एक ही अब रट हुई है,
देख तो लो, कौन आया ?
नागेश भाई
जवाब देंहटाएंआपका पूरा परिचय पढ़ा आपसे बहुत कुछ सिखने को मिलेगा ..
manjula
word verification bhi hata dijiye tipaani bhejne may aasani hogi......
जवाब देंहटाएंगीत बहुत ही मार्मिक .
जवाब देंहटाएंसंवेदना से पूर्ण गीत
जवाब देंहटाएंक्यों जगत की वेदनाएँ
जवाब देंहटाएंपल रहीं मन के निलय में ?
मधुर सपनों की चिताएँ
जल रहीं जर्जर हृदय में।
बहुत भावपूर्ण...शब्दों और भावों का सुन्दर संयोजन और प्रवाह..बहुत सुन्दर
Bhut hi marmsparshi geet h
जवाब देंहटाएंAati sunder
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