कितना और सफर है साथी!
यद्यपि चलना तो जारी है,
लेकिन कदम-कदम भारी है।
पूछ रही अलसाई आँखें-
‘कहाँ तुम्हारा घर है साथी ?’
संगदिल खड़ा सामने फिर भी,
मंजिल का कुछ पता नहीं है।
तेरी भी कुछ खता नहीं है,
मेरी भी कुछ खता नहीं है
शायद कई जनम बीतेंगे,
ऐसी मिली डगर है साथी!
यही आज तक सुनता आया,
सबकी सीमाएँ होती हैं।
पीर चीर देती है पत्थर,
मोहक प्रतिमाएँ रोती हैं।
जितना दर्द उधर है साथी!
उतना दर्द इधर है साथी!
साथी के लिए लिखी गई स्नेह भरी पाती .....अगर कोई प्यार करने वाला दिल समझे तो ...आपके शब्दों में बहुत गहराई हैं ...आभार
जवाब देंहटाएंanju(anu) choudhary ji, आभार
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