चुपचाप रहता था,
चहकना, मुस्कुराना, बोलना
तुमने सिखाया है।
लिए मन में पीर
उसके गरल को
मैं पी रहा था,
विगत के कुछ जख्म
उर पर टाँककर
मैं जी रहा था।
मौन हो
संताप सहता था,
मुखर हो भेद मन के खोलना
तुमने सिखाया है।
‘चार दिन की
जिंदगी का
नाम है हँसना-हँसाना,
कंटकों के
मध्य भी फिर
सिर उठाकर मुस्कुराना।’
मैं जगत से
भले कहता था,
मगर इस भाव में खुद डोलना
तुमने सिखाया है।
बोल तेरे
एक जादू-सा
हृदय में कर गए हैं,
सप्तरंगी
स्वप्न कुछ मेरे
दृगों में भर गए हैं।
समय की धार पर
निर्लक्ष्य बहता था,
विरस वातास में रस घोलना
तुमने सिखाया है।
बहुत सुन्दर गीत....आभार...
जवाब देंहटाएंविगत के कुछ जख्म
जवाब देंहटाएंउर पर टाँककर
मैं जी रहा था।
मौन हो
संताप सहता था,
मुखर हो भेद मन के खोलना
तुमने सिखाया है।......सुन्दर भाव!!