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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

तुमने सिखाया है ; गीत -डॉ. नागेश पांडेय 'संजय'

गीत : नागेश पांडेय 'संजय '
चित्रांकन : डा. रामेश्वर वर्मा 
मैं बहुत 
चुपचाप रहता था,
चहकना, मुस्कुराना, बोलना
तुमने सिखाया है।

लिए मन में पीर
उसके गरल को
मैं पी रहा था,
विगत के कुछ जख्म
उर पर टाँककर
मैं जी रहा था।
मौन हो
संताप सहता था,
मुखर हो भेद मन के खोलना
तुमने सिखाया है।

‘चार दिन की
जिंदगी का
नाम है हँसना-हँसाना,
कंटकों  के 
मध्य भी फिर
सिर उठाकर मुस्कुराना।’
मैं जगत से
भले कहता था,
मगर इस भाव में खुद डोलना
तुमने सिखाया है।

बोल तेरे
एक जादू-सा
हृदय में कर गए हैं, 
सप्तरंगी
स्वप्न कुछ मेरे 
दृगों में भर गए हैं।
समय की धार पर
निर्लक्ष्य बहता था,
विरस वातास में रस घोलना 
तुमने सिखाया है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. विगत के कुछ जख्म
    उर पर टाँककर
    मैं जी रहा था।
    मौन हो
    संताप सहता था,
    मुखर हो भेद मन के खोलना
    तुमने सिखाया है।......सुन्दर भाव!!

    जवाब देंहटाएं

भावों की माला गूँथ सकें,
वह कला कहाँ !
वह ज्ञान कहाँ !
व्यक्तित्व आपका है विराट्,
कर सकते हम
सम्मान कहाँ।
उर के उदगारों का पराग,
जैसा है-जो है
अर्पित है।